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Wednesday, August 24, 2011

हिन्दी साहित्य

RPSC II GRADE EXAM (HINDI)
द्वितीय श्रेणी अध्यापक परीक्षा के लिए विशेष

301 रोमांच, स्वेद, अश्रु, कंप, वैवण्र्य आदि कौनसे अनुभाव है - सात्विक

302 जिनके द्वारा आलम्बन के मन में जागृत होने वाले स्थायी भाव की जानकारी होती है उन्हें कहते है - अनुभाव

303 करूण रस का स्थायी भाव है - शोक

304 देखन मिस मृग विहंग तरू, फिरति बहोरि-बहोरि, निरखि-निरखि रघुवीर-छवि। काव्यांश में आश्रय है - सीता

305 अधिक सनेह देह भई भोरी। सरद-ससिहि जनु चितव चकोरी।। लोचन मग रामहि उर आनी, दीन्हें पलक कपाट सयानी।। उक्त चौपाई में रस है - शृंगार

306 मधुबन तुम कत रहत हरे, विरह वियोग स्याम सुंदर के, ठाडे क्यो जरे ? काव्यांश में आलम्बन है - श्याम सुंदर

307 सुन सुग्रीव मैं मारि हो, बालि हिं एकहि बान, ब्रह्मा रूद्र सरणागत, भयउ उबरहि प्रान। काव्यांश में व्यक्त उत्साह भाव का आलम्बन कौन है - सुग्रीव

308 कामायनी कुसुम पर पडी, वह मकरंद रहा। एक चित्र बस रेखाओं का, अब उसमें है रंग कहा। पंक्तियों में निहित स्थायी भाव आश्रय है - शोक, मनु

309 समता लहि सीतल भया, मिटी मोह की ताप, निसि वासर सुख निधि लह्या, अंतर प्रगट्या आप में स्थायी भाव है - निर्वेद

310 भाषे लखन कुटिल भई भौहे। रद पद फरकत नयन रिसौहें। रघुबंसिन मंह जहं कोउ होई। तेहि समाज अस कहै कोई। में रस है - उत्साह, वीर

वर्ण विचार

311 वर्ण कहलाते है- वह छोटी से छोटी मूल ध्वनि जिसके खण्ड हो सके, वर्ण कहलाती है। जैसे अ् क् च् ज् त् तथा वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते है।

312 हिन्दी वर्णमाला में वर्ण है- 49 (इनमें 11 स्वर, 33 व्यंजन, दो अयोगवाह और तीन संयुक्ताक्षर है)

313 अयोगवाह वर्ण कहलाते है - स्वर व्यंजन से बने वर्ण को इसमें पहले स्वर का उच्चारण होता है जैसे + = अं और + = :

314 संयुक्ताक्षर कहलाते है - जो दो व्यंजनों के मेल से बने है। जैसे क्+ = क्ष, त् + = त्र और + = ज्ञ

315 स्वर किसे कहते है- वह वर्ण जो किसी अन्य वर्ण की सहायता के बिना स्वतंत्र रूप से बोले जाते है। इनकी संख्या 11 है।

316 हृस्व, मूल या एक मात्रिक स्वर है - जिनके उच्चारण मेें काफी कम समय लगता है। इनकी संख्या चार है।

317 दीर्घ स्वर, संधि स्वर किसे कहते है- वह स्वर जिनके उच्चारण में हृस्व से दुगना समय लगता है। यह दो हृस्व स्वर के मेल से बनने के कारण संधि स्वर भी कहते है।

318 प्लुत स्वर किसे कहते है- किसी को दूर से पुकारते समय दीर्घ स्वर से भी अधिक शब्द लगता है। ऐसे स्वर को प्लुत स्वर कहते है। जैसे में का चिह्न प्लुत स्वर है। इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते है। वर्तमान हिन्दी में प्लुत स्वर का प्रचलन बंद हो गया है।

319 व्यंजन कहते है - जो वर्ण स्वरों की सहायता के बिना बोले जा सके उन्हें व्यंजन कहते है।

320 व्यंजन कितने प्रकार के होते है- तीन प्रकार के (स्पर्श, अंत:स्थ, उष्म)

321 स्पर्श व्यंजन की परिभाषा है - से तक 25 वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते है। इनका उच्चारण करते समय जिह्वा का कंठ आदि से उच्चारण स्थानों से पूरा स्पर्श होता है।

322 ईषत/अंत:स्थ व्यंजन अथवा अर्ध स्वर व्यंजन कहलाते है - , , , को अंत:स्थ व्यंजन कहते है। यह आधे स्वर और आधे व्यंजन कहलाते है। इनके उच्चारण में जिह्वा विशेष सक्रिय नहीं रहती है।

323 ईषत/विवृत उष्म व्यंजन की परिभाषा है - , , , को उष्म व्यंजन कहा गया है। इनके उच्चारण में श्वांस की प्रबलता के कारण एक प्रकार की गर्मी उत्पन्न होती है।

324 विवृत स्वर है - (इसे बोलते वक्त मुख सर्वाधिक खुला हुआ होता है)

325 संवृत स्वर है - केवल हृस्व को इसके अंतर्गत माना गया है। हालांकि विद्धानों ने को भी इसके अंतर्गत माना है (जिह्वा का अग्र भाग स्वरों के उच्चारण के लिए अधिकतम ऊंचाई पर होता है)

326 अल्प प्राण शब्द कहलाते है- जिनके उच्चारण में कम समय लगता है। पंचम वर्ग के प्रथम, तृतीय पंचम वर्ण और को अल्प प्राण शब्द कहा जाता है।

327 महाप्राण शब्द है - इसमें पंचम वर्ग के दूसरे चौथे और को लिया जाता है।

328 घोष ध्वनि की परिभाषा है - पंचम वर्ग के तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम तथा घोष ध्वनि है।

329 अघोष ध्वनि कहलाती है- पंचम वर्ग का प्रथम द्वितीय तथा और विसर्ग अघोष ध्वनि कहलाती है।

330 अनुनासिक और अनुस्वार में दीर्घ ध्वनि किसमें होती है- अनुस्वार में

331 हिन्दी शब्दकोष में शब्दों का क्रम होता है - अं क्ष ज्ञ त्र

332 उत्क्षिप्त व्यंजन है - और

333 ध्वनि संकेतों के मौखिक लिखित रूप को कहा जाता है - वर्ण

334 वे ध्वनियां जिनके उच्चारण में हवा निर्बाध रूप से मुख या नाक से बाहर निकल जाती है, कहलाती है ? - स्वर

335 एवं में मध्य स्वर है -

336 जिस स्वर के उच्चारण में मुख सर्वाधिक खुला हुआ होता है कहलाता है- विवृत स्वर

337 स्वरों का सुमेल -

- पश्च स्वर = , , ,

- वृताकार स्वर=, , ,

- संवृत स्वर = , , ,

- दीर्घ स्वर = , , ,

338 हृस्व और दीर्घ स्वरों का विभाजन किस आधार पर हुआ है - समय के आधार पर

339 जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वांस जिह्वा के दोनों ओर से निकल जाती है, कहलाती है - पाश्र्विक

340 सुमेलित है

- मूर्धन्य = , , , ,

- उष्म = , ,

- कोमल तालव्य = , , , ,

341 किस व्यंजन वर्ग की ध्वनियां है- मूर्धन्य उत्क्षिप्त

342 व्यंजन वर्ग की ध्वनियां कहलाती है - तालुवस्त्र्य

343 वर्गो के प्रथम, तृतीय पंचम वर्ण है - अल्प प्राण

344 वर्गो के द्वितीय चतुर्थ वर्ण है - महाप्राण

345 अनुस्वार किन ध्वनियों को कहा जाता है - स्वर के बाद आने वाली नासिक्य ध्वनियां

346 सुमेलित है -

-लुंठित व्यंजन है -

- पाश्र्विक व्यंजन -

- काकल्य ध्वनि -

- वत्स्र्य व्यंजन - , ,

शब्द भेद (स्॥्रक्चष्ठ क्च॥श्वष्ठ)

347 अर्थ की दृष्टि से शब्द के प्रकार है- सार्थक और निरर्थक

348 सार्थक शब्द कहलाते है - जिन शब्दों से किसी अर्थ का बोध हो वे सार्थक शब्द कहलाते है।

349 निरर्थक शब्द कहलाते है - जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं निकलता उन्हें निरर्थक शब्द कहते है। जैसे चर्र चूं, खटर-पटर, गडगड

350 व्युत्पति (बनावट) की दृष्टि से शब्दों के भेद है - रूढ, यौगिक, योगारूढ़

351 रूढ शब्द कहलाते है - जिन शब्दों के खण्ड किए जा सके और यदि खण्ड कर भी दिए तो उनका कोई अर्थ नहीं निकलता जैसे घोडा, मोर आदि

352 यौगिक शब्द कहलाते है- जो दो या दो से अधिक शब्दों अथवा शब्दांशों के मेल से बने हो वे यौगिक शब्द कहलाते है। इनके शब्दांश सार्थक होते है।

353 योगरूढ शब्द किसे कहते है - जो शब्द यौगिक होने पर भी किसी सामान्य अर्थ को प्रकट करके रूढ शब्दों के समान किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते है।

354 रूप परिवर्तन की दृष्टि से शब्दों की कोटियां है - दो (विकारी और अविकारी)

355 विकारी शब्द होते है - ऐसेशब्द जिनमें व्याकरणिक नियमों के अनुसार अर्थात लिंग, वचन, कारक, पुरूष, काल आदि के आधार पर रूप में परिवर्तन जाता है वे विकारी शब्द कहलाते है।

356 अविकारी शब्द होते है - इन शब्दों में लिंग, वचन, कारक, पुरूष, काल आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे आज, अरे, यहां, कौन, बहुत, धीरे

357 स्त्रोत के आधार पर शब्द के प्रकार है - तत्सम, तद्भव, देशी और विदेशी

358 तत्सम शब्द का शाब्दिक अर्थ है - तत् = उसके (संस्कृत), सम=समान। अर्थात संस्कृत भाषा के समान है। तत्सम शब्द संस्कृत है और मौलिक रूप में बिना परिवर्तन के हिन्दी में प्रयुक्त होते है।

359 तत्सम शब्द के उदाहरण है - अंकुर, अम्बुज, इच्छा, गिरि, गीत, चरम, छिद्र, ज्वाला, दास, नारी, परास्त, परम आदि

360 तद्भव शब्द है - ये शब्द संस्कृत शब्दों के विकृत रूप है और इसी रूप में ये हिन्दी भाषा में प्रयुक्त होने लगे है। जैसे अचरज, ऑंख, कान, ऊंट, चॉंद, खेत, दॉंत, दूध, सूत

361 देशी या देशज शब्द है- यह शब्द भारत की भिन्न भिन्न प्रांतीय भाषा या आदिम निवासियों की भाषाओं से हिन्दी में आए है जसे लकड़ी, पगड़ी, पेट, खिचड़ी, ठेठ, तेंदुआ

362 विदेशी शब्द से आशय है - वह शब्द जो विदेशी भाषाओं से हिन्दी में आए गए और यथावत प्रयोग हो रहे है।

363 अरबी भाषा से हिन्दी में प्रयुक्त शब्द है - औलाद, कानून, मौलवी, औरत, फकीर, इज्जत

364 फारसी भाषा से हिन्दी में प्रयुक्त शब्द है - दुकान, अनार, आदमी, खंजर, कलम, चश्मा जल्दी

365 पुर्तगाली से हिन्दी में लिए गए शब्द है - गिरजा, आलू, बाल्टी, नीलाम, कमरा, कारतूस, आलपीन, कमीज, चाबी,

366 हिन्दी में तुर्की भाषा में लिए शब्द है - तोप, कालीन, तमगा, चाकू

संज्ञा

367 संज्ञा किसे कहते है- किसी व्यक्ति, वस्तु, नाम आदि के गुण, धर्म स्वभाव का बोध कराने वाले शब्द संज्ञा कहलाते है।

368 संज्ञा के भेद है - व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, भाववाचक, समुदाय वाचक और द्रव्यवाचक

369 व्यक्तिवाचक संज्ञा किसे कहते है - जिस शब्द से किसी विशेष व्यक्ति, स्थान अथवा वस्तु का बोध हो वह व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाती है। इसमें व्यक्तियों के नाम, दिशाएं, देश, पहाड़ों के नाम, समुद्र, दिन-महीने, पुस्तक, समाचार पत्र, त्यौहार उत्सव, नगर, सडक़, चौक के नाम, ऐतिहासिक युद्ध, राष्ट्रीय जाति, नदियों के नाम

370 जातिवाचक संज्ञा कहलाती है - जिस संज्ञा शब्द से उसकी सम्पूर्ण जाति का बोध हो वह जातिवाचक संज्ञा कहलाती है। इसमें पशु-पक्षियों के नाम, वस्तुओं के नाम, प्राकृतिक आपदा, सामाजिक सम्बन्ध, पद और कार्य के नाम

371 भाव वाचक संज्ञा किसे कहते है - जिस संज्ञा शब्द से पदार्थो की अवस्था, गुण, दोष, धर्म आदि का बोध हो। भाव वाचक संज्ञा अधिकांशत: प्रत्ययों से बनती है, जिनमें क्रदंत और तद्वित प्रत्यय है। कृदंत धातुओं से और तद्वित विशेषण सर्वनाम से बनते है।

372 समुदाय वाचक संज्ञा कहलाती है - जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्तियों वस्तुओं आदि के समूह का बोध हो उन्हें समुदाय वाचक संज्ञा कहते है। जैसे कक्षा, भीड, सभा, गुच्छा, मण्डल, झुण्ड आदि

373 द्रव्यवाचक संज्ञा है- जिन संज्ञा शब्दों से किसी धातु, द्रव्य आदि पदार्थो का बोध हो उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है। जैसे तेल, चांदी, सोना, चावल, पीतल, कोयला

374 मानवता शब्द में संज्ञा है - भाववाचक

375 वात्सल्य के वत्स शब्द में संज्ञा है - भाववाचक

376 देव संज्ञा शद का विशेषण है -दैवीय

377 संज्ञा के भेद होते है - पांच (व्यक्ति, जाति, भाव, द्रव्य और समुदाय वाचक)

378 संज्ञा का भेद नहीं है - गुणवाचक

379 इन्हीं जयचंदों के कारण देश पराधीन हुआ वाक्य में तिरछे शब्द की संज्ञा है - जातिवाचक

380 भाववाचक संज्ञाऔचित्य में मूल शब्द है - उचित

381 लडक़ा शब्द का भाव वाचक संज्ञा होगी - लडक़पन

382 स्त्रीत्व शब्द में कौन सी संज्ञा है - भाव वाचक संज्ञा

383 सफेदी शब्द है - भाव वाचक संज्ञा

384 सच्चरित्रता किस मूल शब्द से बना है - चरित्र से

385 जवान, बालक, सुंदर, मनुष्य में कौनसा शब्द जातिवाचक संज्ञा नहीं है - सुंदर

386 डकैती, आलसी, हरियाली, धीरज में भाव वाचक संज्ञा का उदाहरण नहीं है - आलसी

387 बुढापा भी अभिशाप है इस वाक्य में बुढापा संज्ञा है - भाव वाचक संज्ञा की।

388 ईश्वरत्व है - भाव वाचक संज्ञा

389 निजत्व संज्ञा निर्मित है - सर्वनाम से

390 विद्धवता, सेना, बचपन, दु: में जातिवाचक संज्ञा है - सेना

391 परिष्कार, हरियाली, मिलावट संज्ञाएं है - भाव वाचक

392 पानी कौनसी संज्ञा है - जातिवाचक

393 लाल बहादुर शास्त्री भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री थे। यशस्वी संज्ञा है - व्यक्तिवाचक